हमारे बारे में

भारत की प्राचीनतम संस्कृति-श्रमण संस्कृति के आदि पुरुष, असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य, एवं शिल्प रूप छह महाविद्यालयों के उपदेष्टा, प्रथम तीर्थकर भगवन आदिनाथ को भारत के सभी धर्मो एवं प्राचीन ग्रंथो में अत्यंत आदरणीय स्थान प्राप्त है। ऋषभदेव एवं वृषभदेव भी उनके ही नाम है। विभिन्न धर्मो में उनकी अर्चना भिन्न-भिन्न रूप में की गई है। शाश्वत नगरी आयोध्या में इक्छुवाकुवंशी महाराज नाभिराय के घर जन्मे आदिनाथ का निर्वाण (मोक्ष) हिमालय की पर्वत श्रृंख्लायो में स्थित कैलाश पर्वत पर हुआ था।

हिमालय को गौरीशंकर, कैलाश, बद्रीविशाल, नंदा, द्रोडगिरी, नारायण, नर, त्रिशूली, इन आठ पर्वत श्रेढियों के कारण अष्टापद भी कहते हैऔर इसे ही निर्वाणकाण्ड के अनुसार अष्टापद आदिश्वर स्वामी कहा है। यहाँ से असंख्यात मुनि तपस्या कर मोक्ष गए है। श्रीमद्भागवत के अनुसार यही ऋषभदेव के पिता नाभिराय और माता मरुदेवी ने ऋषभदेव का राज्याभिषेक कर बद्रिकाश्रम में घोर ताप किया था और यही उनकी समाधी हुई है। यहा स्थान आज भी मानसरोवर कैलाश के मार्ग के नाम से विद्यमान है और साधना स्थल के रूप में नीलकंठ पर्वत पर नाभिराज के चरण चिन्ह, बाबा आदम के चरण चिन्ह के रूप में अपनी ओर जन-जन को आकृष्ट करते है।

इसी अष्टापद कैलाश पर भारत चक्रवर्ती, जिनके नाम पर अपने देश का नाम भारत पड़ा है, 24 तीर्थकरो के मंदिर का निर्माण कराया था। यही भूमि भारत-बाहुबली, बाली, महाबली, नागकुमार की साधना स्थली रही है। इसी भूमि पर पार्श्वनाथ का समवशरण आया था। प्रतिदिन अभिषेक दर्शन के माध्यम से दिगंबर रूप में दर्शन, देने वाली, बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित नारयण प्रतिमा, बद्रीनाथ मंदिर के समीप तप्त कुंड के नीचे अकलनन्दा नदी में गरुड कुंड से स्वप्न देकर निकली है, आज भी इस गरुड कुंड में अनेक प्राचीन जैन प्रतिमाये उपलब्ध है। हिमालय के मध्य नागनाथ पोकरी में प्राचीन जैन मंदिर के प्रमाण मिलते है तथा श्रीनगर (गढ़वाल), जहा परम पूज्य एलाचार्य मुनिश्री विद्यानंद जी महाराज का चातुर्मास योग संपन्न हुआ था, में एक अत्यंत प्राचीन शिखरबद्ध मंदिर विद्यमान है। अब तो इस प्रदेश में मुनिराजो के आगमन का सतत प्रवाह बना हुआ है। इससे स्पष्ट होता है की यह क्षेत्र जैन संस्कृति का सर्वोस्तकृत स्थान रहा है, जो आज भी पुकार-पुकार कर इस चैत्र में जैन संस्कृति एवं उनके प्राचीन वैभव को प्रकट करता है। तीर्थ क्षेत्र अतिशय क्षेत्र और फिर इनसे भी पूज्य सिद्ध क्षेत्र एवं निर्माण भूमियो (निर्माण क्षेत्र) के प्रति हमारी शृद्धा सर्वविदित है।

अध्यात्मिकता के मौलिक गुण के कारण ही भारतीय संस्कृति की विचारधारा पाश्चात्य संस्कृति से श्रेष्ठ कहलाती है और आध्यात्मिक की आजस्त्र ऊर्जा हमारे तीर्थ क्षेत्रो में सतत प्रवाहित होती रहती है। इसी लिए प्राचीन युग से लेकर आजतक तीर्थ यात्रा का महत्व बना हुआ है और भविष्य में भी बना रहेगा।

देव भूमि उत्तराखंड जहा कण-कण में देवताओं का निवास माना जाता है, जहा देवता प्रकृति के रूप में साक्षात् विद्यमान रहते है, तथा मानवीय मूल्यों तथा साहस की पग-पग पर परीक्षा लेते जहा के जनसाधारण अपने सरल व्यव्हार एवं निश्चलता से "अतिथि देवो भव" की भारतीय परंपरा का सम्मान कर पालन करते है, ऐसे स्थान पर क्यों न बार-बार जाने का मन करेगा।

इस युग की सर्वोच्च उपलब्धि

प्रथम तीर्थकर भगवन आदिनाथ की निर्माण स्थली ली सर्वप्रथम कल्पना जैन रत्न स्व श्री देवकुमारसिंहजी कासलीवाल एवं स्व. जैन रत्न प्रदीप कुमार सिंह जी कासलीवाल एवं श्री कैलाशचंदजी चौधरी, इंदौर के विचारो में आई और वे ही क्रमश: इसके अध्यक्ष, महामंत्री रहे। उन्होंने अनेको बार अष्टापद-बद्रीनाथ जाकर सभी के सहयोग से करीब 50000 वर्ग फ़ीट भूखंड पर 6 नवीन अतिथिग्रहो, दो हाल, 24 तीर्थकर भगवन के चरण चिन्हो का प्रार्थना भवन, भोजन शाला भवन, मुख्य द्वार, कर्मचारी निवास, पूजन-दव्य कक्ष एवं वी आई पी भवन आदि का निर्माण हो चुका है। यहाँ वर्ष में 6 माह तो बर्फ ही गिरती रहती है। बर्फ पर चलना और कई दुर्घटनाओं की स्तिथि में भी साहस के साथ बार-बार जाकर योजना को क्रियान्यवित करने हेतु निरंतर प्रत्नशील रहने के कारण ही आज यह योजना साकार रूप धारण कर सकी है।

श्री आदिनाथ निर्वाण स्थली अष्टापद बद्रीनाथ में पधारे जैन संत

सन 1970 में प.पू. एलाचार्य मुनि श्री विद्यानंदजी महाराज के बाद निम्न संत क्षेत्र पर पधारे
प.पू. मुनि श्री नमिसागरजी म. प.पू. मुनि श्री वर्द्धमानसागरजी म. प.पू. मुनि श्री सुमेरसागरजी म. प.पू. मुनि श्री जीवेन्द्रसागरजी म.
प.पू. मुनि श्री सुबाहूसागरजी म. बालब्रह्मचारिणी माँ कौशलजी क्षु. श्री कीर्तिधरननन्दिजी प.पू. मुनि श्री आदिसागरजी म.
प.पू. मुनि श्री कामकुमारननन्दिजी म. आर्यिका श्री भरतमती माताजी आर्यिका श्री सुमतिमती माताजी आर्यिका श्री अजितमती माताजी
बहुबलीमति माताजी , गणिनी प्रज्ञामति माताजी प.पू. मुनि श्री गुप्तिसागरजी म. प.पू. मुनि श्री नमिसागरजी म.
प.पू. समता भुषणजी म. प.पू. नयन सागरजी म. प.पू. निर्णय सागरजी म. प.पू. चैत्य सागरजी म.
प.पू. सयमसागरजी म. प.पू. चिराग सागरजी म. प.पू. बालाचार्य योगेंद्र सागरजी म. ससंघ आर्यिका 105 सृष्टि भूषण माताजी ससंघ
प.पू. मुनि श्री उदारसागरजी म. प.पू. आचार्य श्री कुमुदनंदीजी म. प.पू. मुनि श्री प्रज्ञासागरजी म. प.पू. शशांकसागरजी म.
प.पू. प्राप्तीसागरजी म. प.पू. वासपूज्यसागरजी म. कप.पू. कनकसागरजी म. प.पू. विशोकसागरजी महाराज
प.पू. अभिनंदनसागरजी म. आर्यिका सुनयमती माताजी प.पू मुनि श्री प्रमुख सागरजी म प.पू मुनि श्री प्रगल्प सागरजी म.
आ. विशाखाश्री माताजी क्षु. समर्पण सागरजी म. आर्यिका सम्यक श्री माताजी आ. कीर्तिवाणी माताजी ससंघ